✍️ रचना – बदलती दुनिया में हम
मनुष्य की आर्थिक सम्पत्ति, उसका आचरण ही होता है। यदि आचरण ही मनुष्य से प्रतिछिन्न हो जाएगा , तो उसका जीवन एक कंटक के समान होगा। मुझे वह दिन भुला नहीं जाता जिस दिन मेरी मां कहती थी सो जा अब बहुत रात हो गई है मैं तारों का टिमटिमाना देख रहा था जो बेहद आकर्षक लग रहा था। शायद वह दिन कभी नहीं आएगा, लेकिन उसकी यादें सर्वत्र रहेगी। आज की दृष्टि से देखा जाये, तो वर्तमान समय बड़ा विचित्र लगता है। अगर कोई व्यक्ति हमारे रोम रोम से पूछे की आपका जीवन कैसा व्यतीत हो रहा है तो मेरा अभिप्राय यही होगा कि जिस तरह कांटों के बीच में एक कोमल मुलायम फूल को फेंक दें तो, उसके सीने में कटीले कांटे छेद कर देते हैं इस तरह कोई व्यक्ति भले किसी से मतलब ना रखता हो तब भी वह अपने साथियों वह गैर जिम्मेदार लोगों के नजरों में बदनाम है क्योंकि वह किसी से मतलब नहीं रखता और अपने काम से काम रहता है लोग ताने मारते हैं। कि घर में नई स्त्री के जैसे घुसा रहता है इस बदलती आलसी दुनिया में दिन पर दिन रोजगारी बढ़ती जा रही है लेकिन अभी भी लोगों को समझ में नहीं आता है कि हम आगे चलकर क्या करेंगे और निष्कर्ष यही निकलता है कि हमारे माता-पिता ने हमें ऐसा बनाया है। सभी लोगों को यह समझ में नहीं आता की जिंदगी एक कठिन परीक्षा है जो इस कठिन परीक्षा से निकल गया वहीं उन्नत के मार्ग पर अग्रसर होगा यदि मैं एक कड़वा सच बताऊं अगर कोई व्यक्ति एक ₹1 बचाने को सोचता है तो वह हमसे 100 गुना अच्छा है क्योंकि उसको पता है कि मैं आगे चलकर इन पैसों का उपयोग अच्छे कामों में करूंगा। नजरिया बदल चुका है। क्योंकि किसी से मतलब नहीं। समाज अपना काम समझता है, लोग ताने मारते हैं कि घर में क्यों घुसा रहता है। इस बदलती आलसी दुनिया में दिन-प्रतिदिन बेरोज़गारी बढ़ती जा रही है। लेकिन अभी भी लोगों को समझ में नहीं आता कि हम अपने कर्तव्यों का पालन कैसे करें।
यह समय में नहीं ठहरेगा। कठिन परीक्षा है, जिसे कठिन परीक्षा से निकल गया, वही उन्नति के मार्ग पर अग्रसर होगा। अगर कोई व्यक्ति अपना समय बर्बाद करता है, तो उसे उसका फल कभी नहीं मिलेगा। आलसी व्यक्ति कभी कामयाब नहीं होता।
लोग सोचते हैं कि समय बहुत है, लेकिन समय कभी रुकता नहीं। आलस्य का जीवन हमें पीछे की ओर धकेलता है। आलस्य से हमें बहुत हानि होती है। आलसी व्यक्ति का जीवन दुःखमय और निरर्थक हो जाता है। इसीलिए हमें आलस्य को छोड़कर कर्मपथ पर आगे बढ़ना चाहिए।
जब से विज्ञान आया है तब से समय की बचत बहुत होती है लेकिन जितना समय की बचत होती है उतना ही यह दुनिया आलसी प्रकृति का होता जा रहा है यही लोगों का सबसे बड़ा राक्षस होता है। आलस हम अपनी कूटनीति से समाज को अच्छा दिखा सकते हैं कि वह कभी ऐसा कार्य न करें कि लोगों को तकलीफ हो यद्यपि समय वह चीज होती है जो राजा को रंग भी बन सकती है इस बदलती दुनिया में कर्म शब्द बहुत ही महत्वपूर्ण है जो व्यक्ति कार्य करने का अभिलाषी हैं वही व्यक्ति कभी भूख से तड़पेगी नहीं ना उसे कभी-कभी रोटी मांगने की आवश्यकता है इस पर जो बात है। रोटी मांगे कर्म है, बिना कर्म न कुछ। जो आलस को डालता, उसी के कटोरा में न कुछ। उपर्युक्त कथन में साफ-साफ कहा गया है कि-जो हमारा अन्य से निर्मित रोटी होती है वह कर्म अर्थात मेहनत मांगती है और बिन मेहनत के इस दुनिया में कुछ भी नहीं है और जो व्यक्ति अपने आलसी शरीर को और बढ़ावा देते हैं इस संसार में प्रगतिशील कर्तव्यनिष्ठा व्यक्ति हुए हैं जिसने इस मृत्युलोक में जन्म लेकर इसकी मिट्टी को समझकर अपना तन मन मेहनत और खून पसीना बहने वाले ही कुछ कर पाते हैं नहीं तो रोड पर पड़ा भिखारी को भी कोई चार पैसे दे देता है।